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राजस्थान दिवस

 सुरमो भरयो थाल माँये, दिवाना मीठा पकवान रा। हुंकार उठे प्रताप री अठे, म्हैं मिनख राजस्थान रा ।। टाबर टिंगर गाथा गाँवे अठे पन्ना रे बलिदान रा, सेठिया री कविता गुंजे गीत गावों कानदान रा ! करस्यां थारी मान - मनवार अठे भूखा मिनख मेहमान रा। भोमिया , तेजा रा थान पूँजे थपिया खेजड़ रे थान रा..! पधारो पांहुणां म्हारे देश बोळ मीरा रे मीठा गान रा। थै आवो तो राजी होवे मनड़ो म्हैं मिनख भोळा-ढाला राजस्थान रा। लिख लिख ने करद्यो धोळा कागद काळा पिळा पण म्हैं राजस्थान हुँ जिण रो बखाण थै कदै न कर सको। @बाईसा_री_कलम_स्यूँ

साट्टो

 म्हाने साटो चहिजै" म्हारे बदले में म्हारे जेडी ही इक नारी , पण म्हैं नि मांगू  थारी बेहण ने...... केहवे हैं हर पुरुष माँय इक स्त्री होवे , जो स्त्री ने हमझ सके , मने थारे भीतर बस्योड़ी उण स्त्री रो मन चहिजै.... हाँ म्हाने साटो चहिजै!! इक सुटकेस भर ने पईसा  चहिजै.. जिण माथे गाँधी नि होवे , होवे उण माथे  छाप्योड़ी प्रेम सूं लिखी  कवितावां चहिजै..! सिणजारो म्हाने भी चहिजै मूंगा मोल रो ... जिण री  किमत तक कोई न पूंग  सके... काजल री डिब्बी  नि मांगू म्हैं ,म्हैं मांगू सजण थारी मूरत हर पल आँख्याँ में सजे.....! थै दिज्यों म्हाने सारी खुसी हर नेन्हा मोटा बक्सा में, भर थारों मतवालोपण अ'र थारों भोळोपण थोरों थोरों अल्हड़पण थारी कमियाँ रे साथ  म्हारा रेजियों....! सात आठ लाख रुपयों सूँ मानूँ कोनी मैं.......... दस- बीस बक्सा भर ने आइजो , जिण में भरी पड़ी हो थारी सगळी खुशियाँ.... छोटा मोटा खोना में छुपाया हुआ दुःख , अधूरा रीया सुपणा, थारो डर , थारो राज़  जो थै अजै तक किण सूं भी नि कह्यों वे सब म्हारा हैं आज ती.....! वे तो बिल्कुल लेणो नि भुलू जै बंद मुट्ठी में चिट्ठी जण में सजी हैं यादें  ज

एक डर

 जब कभी स्कूल काॅलेज से लेट हो जाती , माँ काॅल पे काॅल लगाती , उनकी फिक्र करना हमें कई बार अच्छा नहीं लगता था । कई बार काॅल लेते ही नहीं थे, और ले भी लेते तो कहती थी आ रही हूँ , छोटी बच्ची नहीं हूँ अब । कभी कभार देरी हो जाती है , काॅल पे काॅल क्या लगा रखा है। तब नहीं पता था प्रेम क्या होता हैं , और ना माँ ने समझाया , वे जानते थे उम्र होने पर सब समझ जाएगी। माँ हमसे प्रेम करती है , उन्हें हमारी फ़िक्र हमेशा लगी रहती है। आज जब तुम्हें कभी काॅल करते और तुम नहीं उठाते , सच मुझे भी उतना ही डर लगता है , जितना माँ को लगता था , हमारे देर हो जाने पर । तुम्हारा लेट रिप्लाई आना , मेरे मन में कभी शक़ की घण्टी नहीं बजाती , लेकिन एक डर हैं जो दिलो-दिमाग में छा जाता । कभी कभी तुम्हारी उतनी फिक्र होने लगती है , जितनी माँ को होती थी । आज समझ आता है कि मन तब कैसे हिलोरें लेता था । सच कई बार बहुत डर जाती हूँ, अब इस जिंदगी में पाने के लिए तो बहुत कुछ है , पर खोने के लिए सिर्फ तुम हो। जिसे मैं कभी खोना नहीं चाहती।  सोचती हूँ कई बार कि बात करूँ ही नहीं , लेकिन ५ घण्टे से ज्यादा नहीं रोक पाती हूँ खूद को, एक प

छोरी रा पईसा

छोरियों रा पईसा लेन कतरो मोटो काम करों हो ... छोरियाँ रा  पईसा थै सम्बधी सूं नहीं थै थारी ही छोरी  रे पास सूं लेवो हों। थै  कई सोचो ४-५ लाख रुपिया मिनख रे घर में पड्या है कै , उधार लेन  तो कठे जमीन बेच ने लावे है , फेर थारी ही  छोरी जा ने एक एक रुपया चुकावे है । मोटा मिनख केहवे है थारे कन्ने छोरी हैं तो थू सबसूँं अमीर हैं पण थू इयू अमीर बणवा लाग्यों तो कठे हाली। छोरी रे जणवा माथे इज थै तो उण रो मोल करों हो , म्हैं तो म्हारी छोरी ने ६-७ लाख सूँ निची नी देऊँ ... थाने आ बात करता भी शरम कोनी  आवे..!  क्यों पईसा रे लारे थै अतरा गेल्ला होग्या , सब चीज़ा नि मिले हैं पईसा सूँ , बेटी तो  अनमोल रत्न हैं मानवी  क्यों थै उण ने व्यापार बणावों हो थै खुद थारी छोरी माथे कलंक लगावों हो, पईसा देण कै काम होवे थाने भी ठा है सब म्हारा  सबद नि लिख सके हैं। कठे सरकारी नौकरी तो कठे  पईसा देख लिया , थै कदै छोरी री खुसी नि देखी । मिरच रोटी देख ने छोरी देवों ब्याज माथे लिदोड़ा पईसा री जेब देख ने मत देवों। मिनख पंचायती कर ने आप आपरे घरे हाली , थारौ घर थाने देखणों हैं। पंच कदी खुद रे घर री हाँची पंचायती नि किदी था

“आटा साटा एक कुप्रथा"

          आटा-साटा प्रथा --------------------- म्हारे बाबोसा तो रुपिडा़ रा लोभी राज, मायड़ म्हारी बिंदणी री भुखी सा राज। गंगा ने जमना तो म्हारे अखियाँ सूँ बहाई, गंगा रे जमना सांगे म्हाने भी परणाई। --------- यह मारवाड़ में लगभग हर जाति में प्रचलित हैं कुम्हार (प्रजापति), राज पुरोहित, देवासी और भी  इस प्रथा में बेटी के बदले बेटी दो आपके घर की बेटी हमारे घर की बहू और हमारी बेटी आपके घर , आपके घर बेटी नहीं है तो पैसे दो अर्थात बेटी के पैसे लेते या पर दहेज प्रथा के विपरित हुआं लड़की वालें पैसे लेते हैं मतलब तो यही हुआ लड़की को बेचना (म्हारा बाबोसा रुपिडा रा लोभी राज,) आटा साटा होने पर सामने वाले घर की बेटी की तो  उम्र है शादी की, उसका ब्याव होने पर आपके घर की बेटी छोटी होने पर भी उसकी भी शादी करनी पड़ेगी भले छोटी क्यु न हो (म्हारी मायड़ तो बिंदणी री भुखी सा) जब माँ बहू को घर लाएगी तो अपनी बेटी को भी ससुराल भेजना पड़ेगा भले उसकी उम्र कम हो । मतलब यदि आपको बहू चाहिए तो आपकी बहन बेटी उनके घर देनी पड़ेगी । वो दोनों ही एक दुसरे की नणद भाभी होगी । जैसे मेरी मामी हैं और ऐसे मेरी बुआ लगती हैं। जैसे

स्त्री

 तुम स्त्री को स्वतंत्रता , सम्मान , प्रेम देकर तो देखो ,      वो सचमुच तुम्हें बहुत कुछ दे सकती है । ©दीपिका प्रजापति:-- स्त्री की पाज़ेब उनकी बेड़ियां नहीं पाबन्दियां नहीं है , बल्कि उसकी झंकार में विजय के स्वर है । किसी पर लगाईं रोक टोक से तुम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते । किसी से प्रेम पाने के लिए तुम्हें घुटनों के बल बैठकर गुलाब देना भी पड़ेगा , वहाँ गुलाब महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण है तुम्हारी अकड़ का झुकना। समय पाने के लिए तुम्हें ख़ुद को समय के साथ बदलना होगा , पुरानी सोच नये जमाने में नहीं चलती । पंख देकर देखो नारियों को वो सचमुच तुम्हारे लिए आसमां से सितारे ला सकती है। 🌺🌺🌺🌸🌸🌸🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌸🌸🌸🌸🌸